अप्सरा सोनाली अध्याय २ : पेँचिदा रिश्ते
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10-28-2016, 05:20 AM
Post: #1
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![]() दोपहर को बीट के वक्त मैँ सोनाली की बिल्डीँग के दो चक्कर लगाता । बंद खिडकी देखता और चरमराहट लिये लौटता । कई दिन ऐसे ही गुजरे । फिर एक दोपहर मेरी और उसकी आँखे दो चार हुई । स्वप्नील जोशी उसे अपनी कार मेँ छोडने आया था । मैँ वहीँ टहलने लगा । शायद वो दोनोँ साथ फिल्म कर रहे थे । वहीँ कार गेट से बाहर जाते मैँने देखा । मेरी सारी चाहत उफान मार आयी । मैँ जोश मेँ ही उपर पहुँचा । सोनाली का दरवाजा खुला था । अंदर सोनाली अकेलीही डान्स प्रैक्टिस कर रही थी । पतले टी शर्ट में सेब तन जाने से उनका आकार लिया था । जीन्स की मायक्रो पैँट गुप्तांग को टाईट बांधे थी । लगा मानो मेरे ही गोटे कसकर बंधे जा रहे हो । गोल मटोल मुलायम कुल्हे जैसे टीवी पर दिखते पर आँखोँ मे खून जमने से हाय डेफिनेशन - छूने मैँ तरसा । पहली बार लडकी की खुली टांगे देख रहा था । कितनी गोरी । उनपे शिश्न रगडने ललचाती । जुनून मेँ मैँ दौडा और सोनाली को पीछे से आलिँगन दे पैँट का तंबू करता सामान कुल्होँ के बीच दबाया । दिमाग मेँ बिजली दौडी । मुलायम शरीर बाहोँमे जखडे कुल्होँमेँ शिश्न रगडता, हो सके उतना सोनाली के टांगो के बीच जाने की कोशिश करने लगा ताकि उसकी गुलाब की पंखुडियाँ मेरे सामान से रगडी जायेँ । खून नसनस मेँ दौडने से जन्नत का सुख मिल रहा था । सोनाली की काँच की किनकीन जैसी चीख म्यूजिक मेँ दफन हुई । वह सुरीली तेज़ आवाज कान मेँ सुन शिश्न और तना । पर जुनून उतरते ही मन मेँ दिलीप प्रभावलकर का चौखट राजा लहरा । जिस मेँ दिमाग का विकास ना हुआ आदमी अपनी दोस्त से सेक्स भावना रोक नहीँ पाता । मेरी जखडन से छूँटी सोनाली ने मुडकर देखा । "स्वप्निल ?" |
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10-28-2016, 05:41 AM
Post: #2
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![]() मैँने सीधे सोनाली की आँखोँ मेँ देखा । भावनाओँका सैलाब उमड़ चुका था । मेरा रोम रोम पिछले दिनोँके रुखे बर्ताव का हिसाब मांग रहा था । मैँ फूट फूट कर रोने लगा । हो तूम दुनिया की सबसे हसीन लडकी । है तुम्हारे करोडो चाहनेवाले । पर मेरेलिये तूम मेरी सोना हो । मै कोई मामूली शख्स नहीँ हूँ ।"तो क्या हो ?" मेरी मर्दानगी को हल्के से ललकारते पूँछा । अब गल्ती के लिये जगह नहीँ थी । मैँने मेरी चाहत को गले लगाया । कंधे पर सर रखकर सुकून पाया । उसे बाँधे रखने के लिये मन भारी होते हुए भी होठोँ को चूमा । मुलायम होठोँ के स्पर्श से मेरे सीने और हाथोँ मेँ गर्मी फैली । मीठे होठ चूमते ही यह रस और चखने का मन हुआ । मैँ पंछी की चोँच बना चूमने लगा । हम दोनो एकदूँसरे की छोडी साँसो मेँ साँस लेकर घुलमिलने लगे । सोनाली कुछ देर बिना किसी हरकत रहने के बाद मेरी प्रणय क्रिया मेँ प्रतिक्रीया देने लगी । अब हम दोनोँ एकदूँसरे के होठ चूँसने लगे । सोनाली कभी होठोँ से होठ भिडा मेरे मुँह की हवा खीँचती, जबान खीँचती । बारी बारी मेरा उपर का और नीँचे का होठ चूम अंदर खीँच लेती, कभी हल्के से काटती । तब तो मेरा शिश्न और कडा हो कर उसकी जंघा की गर्मी मेँ सेँक लेता । करीब पाँच मिनट बाद सोनाली रुकी । होठ अलग हुए । अब तुम खुश हो नां ? संतोष मिला ? मेरे पास हां कहने के सिवा कोई सीधा रास्ता ही नहीँ था । मुझे तो बहोत कुछ करना था । होठ चूमते हुए कुल्हेँ मसलने थे । और भी....। अब कुछ जुगाड़ चलाना होगा, वरना जन्नत के द्वार मेरे लिये हमेशा के लिये बंद हो जाते । |
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10-28-2016, 05:48 AM
(This post was last modified: 10-29-2016 03:13 AM by swapnil.)
Post: #3
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